Saturday, April 3, 2021

जानिये निर्जला एकादशी का महत्व और इसके चमत्कारी लाभ

 


जानिये निर्जला एकादशी का महत्व और इसके चमत्कारी लाभ !

जी हाँ दोस्तों निर्जला एकादशी के एक व्रत से.आपकी आने वाली 10 -10 पीढ़ियो का उद्धार हों सकता हैं.क्योंकी अगर आप आने वाली nirjala ekadashi  का व्रत और पूजा विधि-विधानुसार करेंगे.तो आपको हों सकता हैं सुवर्णदान का फल प्राप्त.मित्रो सुवर्णदान का हमारे हिन्दू शास्त्रों में बड़ा महत्व हैं.ऐसा कहा जाता हैं जो भी ये फल प्राप्त करता हैं उसका जीवन आनंद से भर जाता हैं.तथा आने वाली 10 -10 पीढ़ियो का उद्धार हों जाता हैं.

अब आप जानना चाहेंगे की निर्जला एकादशी कब हैं ? और इसका अर्थ क्या हैं ?

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Nirjala ekadashi kab hain aur nirjala ekadashi ka meaning kya hain?

निर्जला एकदशी साल की 24 एकादशियो में सबसे मह्त्वपूर्ण और मुश्किल हैं. क्यो निर्जला का मतलब हैं. बिना पानी के और ये व्रत बिना पानी और अन्न के व्यवहार किये बिना किया जाता हैं.इसलिए ये व्रत अपने मुश्किल fasting rules के कारण सबसे मह्त्वपूर्ण माना  गया हैं.

निर्जला एकादशी का महत्व क्या हैं ?

इस एकादशी के व्रत को करने से समस्त तीर्थो का पुण्य,सभी 14 एकादशियो का फल मिलता हैं. इसका उपवास धन-धान्य देने वाला,पुत्रदायक,आरोग्यता को बढ़ाने वाला,तथा दीर्घ आयु को बढ़ाने वाला हैं.

श्रद्धा और भक्ति से किया गया ये व्रत ,सब पापो को सं भर में नष्ट कर देता हैं. जो मनुष्य इस दिन स्नान,जप और दान करता हैं.वह सब प्रकार से अक्षय हों जाता हैं.

ऐसा भगवान् श्री कृष्ण ने कहा हैं.जो फल सूर्ये ग्रहण के समय कुरक्षेत्र में दान करने से होता हैं.वही फल इस व्रत के करने. और कथा पढ़ने से भी प्राप्त होता हैं.

वर्ती की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.वह इस जगत का सम्पूर्ण सुख भोगदे हुए,परमधाम जाकर मोक्ष प्राप्त करता हैं.

what is nirjala ekadashi vrat procedure ?

ये व्रत जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष को रखा जाता हैं.इस दिन ब्रह्म मुहर्त में जग कर.रोज के कामो से निर्वित हों कर.स्नान कर के पवित्र हों.फिर स्वच्छ वस्त्र धारण कर.भगवान् विष्णु की पूजा आराधना.व भक्तिभाव से विधि-विधानुसार संपन्न करे.

महिलाये पूर्ण श्रृंगार कर.मेहँदी आदि रचाकर.पूर्ण श्रधा ,भक्तिभाव से पूजन करने के पश्चात.कलश के जल से पीपल के वृक्ष को अर्घ्य दे.

फिर व्रती प्रातःकाल से आरंभ कर.दुसरे दिन सूर्ये उदय तक जल और अन्न का सेवन न करे.

क्योंकी जेष्ठ मास के दिन लम्बे और भीषण गर्मी वाले होते हैं.अंत: प्यास लगाना सव्भाविक हैं.ऐसे में जल ग्रहण न करना.सचमुच एक बड़ी साधना का काम हैं.बड़े कष्टों से गुजर कर ही ये व्रत पूरा होता हैं .इस एकादशी के दिन अन्न अधवा जल का सेवन करने से व्रत खंडित हों जाता हैं.

व्रत के दुसरे दिन.यानी द्वादशी के दिन प्रातः काल निर्मल जल से स्नान कर.भगवान् विष्णु की प्रतिमा या पीपल के वृक्ष के नीचे जल,फुल ,धुप ,अगरबती और दीपक जलाकर प्रार्थना करे ,शमयाचना करे.तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाए.वा सव्ये भी भोजन करे.

इसके पश्चात यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान -दक्षिणा में शीतल जल से भरा मिटटी का घडा,अन्न ,वस्त्र ,छतरी,पंखा ,गो ,पान ,आसन ,सवर्ण ,फल आदि दे!

ऐसा माना जाता हैं की जो भी व्यक्ति घाटदान देते समय जल का नियम करता हैं ,उसे एक प्रहर के अंदर-अंदर कोटि-कोटि सुवर्णदान का फल मिलता हैं.इस दिन घर आये याचक को खाली हाथ वापस करना बुरा समझा जाता हैं.

 

निर्जला एकादशी की कथा क्या हैं ? और भीम एकादशी किसे कहते हैं ?

इस व्रत की कथा का उलेख महाभारत और श्री पदमपुराण में इस प्रकार से हैं –
एक दिन महाऋषि वेदव्यास से भीमसेन ने पूछा- पितामाह मेरे चारो भाई -युधिष्ठिर,अर्जुन ,नकुल,सहदेव ,माता कुंती और द्रोपती सभी एकादशियो को उपवास रखते हैं.निर्जला एकादशी को तो जल भी ग्रहण नहीं करते हैं.

वे चाहते हैं मैं भी उनकी तरह विधि-विधानुसार जल और अन्न ना ग्रहण कर के.उपवास रखु.मैं तो एक समय भी भोजन न ग्रहण करे बिना बुखा नहीं रह सकता.मेरे पेट में अग्नि का वास हैं.जिसकी शान्ति के लिए मुझे बहुत सा अन्न भोजन में खाना पड़ता हैं.

हाँ मैं विधिवत भक्ति भाव से भगवन की पूजा और दान कर सकता हूँ.क्या कोई ऐसा व्रत नहीं हैं.जिसमे मुझे कोई जादा कष्ट ना हों.और एक ही दिन में सभी राशियों का फल प्राप्त हों जाये?

तब महा ऋषि वेदव्यास बोले -हे भीम तुम जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो!

इस व्रत में स्नान और वाचमन को छोड़कर.जल का व्यव्हार मत करना .इसके उपवास से तुम्हे सभी 14 एकादशियो को फल प्राप्त होगा.

फिर महा ऋषि वेदव्यास के सामने प्रतिज्ञा कर .इस एकमात्र एकादशी का व्रत पूरा किया.तभी से इसे “भीमसेनी एकादशी” या “भीम एकादशी” या पांडव एकादशी  के नाम से भी जाना जाता हैं!

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