Sunday, April 25, 2021

प्रभु श्री राम और देवी दुर्गा के विजय का पर्व हैं दशहरा


प्रभु श्री राम और देवी दुर्गा के विजय का पर्व हैं दशहरा


अश्विन मास में शुक्ल अक्ष की दशमी तिथि को दशहरा ( Dussehra) का पर्व मनाया जाता हैं. इस पर्व को मनाने के पीछे महतपूर्ण कारण श्री राम की लंका पर विजय थी, रावण को मारकर श्री राम ने धरती को राक्षसों से मुक्त किया ,देवी दुर्गा ने नौ दिन और नौ रात्रि युद्ध करके इस दिन महिषासुर का वध किया था, इसलिए इस पर्व को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता हैं.इसलिए इस पर्व को विजयादशमी भी कहते हैं. ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन जो भी कार्य आरम्भ किया जाये उसमे सफलता अवश्य मिलती हैं.

Why is Dussehra Celebrated


दशहरा ( Dussehra Festival) मनाने के पीछे जो ऐतिहासिक गाथा जुडी हुयी हैं, वह ये हैं कि श्री राम ने सीता को रावण कि कैद से छुड़ाने के लिए लंका पर आक्रमण करके रावण का वध किया था, दशहरा का अर्थ हैं कि दस बुराइयों को हराना या उनसे छुटकारा पाना. दशहरा का अर्थ हैं बुराई पर अच्छाई की विजय, असत्य पर सत्य की विजय. दशहरा पर्व पूरे हिन्दुस्तान में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं,




इस दिन जगह जगह बुराई के प्रतीक के रूप में रावण, मेघनाद, और कुम्भकरण के पुतले जलाये जाते हैं. और रामलीला का आयोजन किया जाता हैं. शारदीय नवरात्रि भी इन्ही दिनों होती हैं, देवी दुर्गा की जगह जगह पर स्थापना की जाती हैं, और मंडप सजाया जाया हैं, और दसवे दिन उनकी मूर्तियों का विसर्जन किया जाता हैं. पश्चिमी बंगाल में माँ दुर्गा अष्टमी पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता हैं.

Dussehra & Vijayadashami Origin | Significance of Dussehra


दशहरा ऐतिहासिक (history of dussehra)  और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार हैं, भारत में ही नहीं इसकी महत्ता भारत के बाहर के देशो में भी हैं, नेपाल और बांग्लादेश में भी दशहरा धूमधाम से मनाया जाता हैं. भारत में कुल्लू का दशहरा , और मैसूर का दशहरा प्रसिद्द हैं, कुल्लू के दशहरा में एक बात बहुत विशेष हैं, वह यह हैं कि वहाँ रावण का पुतला जलाया नहीं जाता .मैसूर के दशहरे की बात विशेष हैं वहाँ चामुंडेश्वरी मंदिर में पूजा अर्चना के साथ दशहरा उत्सव मनाया जाता हैं.


दशहरा पर्व सच्चाई का प्रतीक हैं,बुराई पर अच्छाई की विजय , का , भारत के विभिन्न प्रांतो में दशहरा अलग अलग रूप में मनाया जाता हैं.पश्चिमी बंगाल, ओडिसा , और आसाम में दशहरा का पर्व दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता हैं.आसाम और ओडिसा में यह पर्व 4 दिन तक मनाया जाता हैं .


वही पश्चिमी बंगाल में माँ दुर्गा ( maa durga) का पर्व 5 दिन तक मनाया जाता हैं.पश्चिमी बंगाल में दशहरा का पर्व (festival of dussehra) दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता हैं. माँ दुर्गा की भव्य मूर्ति बनवाकर उन्हें पंडालों में स्थापित किया जाता हैं, और दसवे दिन माँ की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता हैं.. गुजरात में शारदीय नवरात्रि के दौरान गरबा की धूम होती हैं , गरबा वहाँ की शान हैं , पूजा के पश्च्यात वहाँ डांडिया नृत्य की धूम होती हैं. इस पर्व पर वहा पर सोने के आभूषणों की खरीद को शुभ माना जाता हैं.

Importance of Dussehra


दशहरे का पर्व ( Dussehra) शक्ति का पर्व हैं, यह पर्व शक्ति का विजय पर्व हैं. देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय , श्री राम की रावण पर विजय , का उत्सव हैं. देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में इसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाता हैं.इसी दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दुओ के रक्षार्थ हेतु युद्ध शुरू किया .विजयादशमी का पर्व शुभ कार्यो को करने के लिए शुभ मुहूर्त होता हैं.दशहरा का पर्व हमें बताता हैं की बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो वह अच्छाई के आगे टिक नहीं सकती , बुराई का अंत निश्चित हैं, अच्छाई के सामने बुराई जिन्दा नहीं रह सकती हैं.


दशहरा का पर्व विजय (vijaydashmi)   का पर्व हैं , यह अच्छाई का बुराई पर , असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक हैं. देवी की विजय के रूप में यह विजयदशमी हैं. यह पर्व सन्देश हैं की बुराई कि दिन नहीं तना भी मजबूत क्यों न हो वह अच्छाई के सामने उसका अस्तित्व ज्यादा दिन नहीं रहेगा . श्री राम की लंका पर विजय और रावण का वध हमें सन्देश देता हैं, की बुराई कितनी भी सबल क्यों न हो , अच्छाई के सामने वह नहीं रह सकती , श्री राम की रावण पर विजय , देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय इसके प्रमाण हैं. सत्य से बढ़कर शक्ति किसी की भी नहीं , सत्य की शक्ति धूमिल हो सकती हैं , पर वह नष्ट नहीं हो सकती , बुराई का अस्तित्व क्षणिक भर का हैं. सत्य का अस्तित्व हर युग हर काल में रहेगा.
















 

Friday, April 9, 2021

पूर्णिमा का महत्व - Purnima (Full Moon) Meaning in Hindi

 

Purnima (Full Moon) Meaning in Hindi 

What is the New Moon

पूर्णिमा एक भारतीय और नेपाली शब्द हैं जिसका अर्थ पूर्ण चंद्र हैं इस दिन चाँद (मून) अपने पूरे आकर में होता हैं !

Purnima Kab Hain

Purnima Hindu Calendar के अनुसार पूर्णिमा का दिन हर महीने में एक ही बार आता हैं जो 2 पक्ष (मंथ )को बाटता हैं पक्षा भी 2 प्रकार के होते हैं 

Shukla पक्ष और कृष्णा पक्ष ,पूर्णिमा से पहले वाले दिन शुक्ल पक्ष कहलाते हैं तथा बाद के दिन कृष्णा पक्ष कहते हैं!

 


पूर्णिमा का महत्व - Purnima Upvaas

1. हिन्दू पंचांग में, हर पूर्णिमा महीने पर एक महत्वपूर्ण त्योहार महीने से जुड़ा है। इसलिए एक वर्ष के बारह महीनों में बारह पूर्णिमा विशेष अवसरों और त्यौहारों को चिह्नित करता है।
2. पूर्णिमा के अवसर पर, आकाश में पूर्णिमा की  चमक अंधेरे को हटाने और प्रभा का प्रतीक है। इसलिए यह प्रतीकात्मक रोशनी का प्रतिनिधित्व करता है।
3. पूर्णिमा परिपूर्णता, बहुतायत और समृद्धि का प्रती, क है।
4. पूर्णिमा के दिन पर कि पूजा पर्यवेक्षकों के महान गुण प्रदान करने के लिए कहा जाता है। इसलिए सत्यनारायण पूजा जैसी खास पूजा इस दिवस के अवसर पर आयोजित की जाती हैं।
5. कई देवताओं ने बुद्ध की तरह पूर्णिमा के दिन पर जन्म लियाजैसे सुब्रमण्या और दत्तात्रेय । भगवान विष्णु के अवतार पहले अर्थात् मत्स्यावतार इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे ।



विज्ञान के कारण हमे पता चलता हैं कि पूर्णिमा के दिन, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल अपनी अधिकतम पर होता हैं।


इसका मनुष्ये पर बेहद सकरात्मक प्रभाव पड़ता हैं जिनसे मनुष्ये के मेटाबॉलिशम को संतुलन , शारीरिक समता, मन का संतुलन , गैस्ट्रिक समस्याओं में विभिन्न चयापचय की प्रक्रिया को स्थिरता, ऊर्जा का विकास ,शरीर और मस्तिष्क का अध्बुद्ध संतुलन होता हैं |

Purnima Vrat Kaise Karen? 

Purnima Vrat Vidhi 

Purnima Fast Rules


पूर्णिमा के दिन, भक्त सुबह जल्दी उठता है और सूर्योदय से पहले एक पवित्र नदी में पवित्र स्नान लेता है।

आप अपने हित के अनुसार, भगवान शिव या विष्णु पूजा कर सकते हैं। पूर्णिमा पूजा के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है। पूर्णिमा घरों में सत्यनारायण पूजा करने के लिए एकदम सही दिन है।

इस दिन कुछ भी खाये बिना पूरे दिन उपवास रखना एक सही विकल्प है, एक भोजन की अनुमति होती है, अगर भक्त को पसंद हों तो । हालांकि, यह भोजन नमक, अनाज या दालों से मुक्त होना चाहिए।

उपवास सूर्योदय के समय शुरू होता है और चंद्रमा के देखा कर समाप्त होता है।

शाम में भक्त को पूर्णिमा के दर्शन करने होते है और चंद्रमा ईश्वर के प्रति अपने प्रार्थना और पूजा प्रदान करनी चाहिए । इस के बाद, प्रसाद सेवन किया जा सकता है।

उपवास पूर्णिमा के लाभ


उपवास एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। विशेष रूप से पूर्णिमा पर उपवास से शरीर और मन पर कई सकारात्मक असर हो सकते हैं ।

पूर्णिमा उपवास के कुछ दूरगामी लाभ , शरीर में एसिड की मात्रा को नियंत्रित करना , धीरज शक्ति बढ़ाना और पाचन तंत्र सफाई करना हैं।

उपवास के माध्यम से, मन और शरीर को एक अवसर के रूप में आराम करने का मौका मिलता है।

संयुक्त पूजा और प्रार्थना दिन में साथ किया जाते हैं , Purnima Upvaas शरीर को ताज़ा और रिचार्ज करता हैं वा समृद्धि और खुशी से भर देता हैं ।

प्रत्येक पूर्णिमा का महत्व 

Paush Purnima Significance 

Paush Purnima Importance in Hindi

पौष पूर्णिमा (पौष पूर्णिमा): शाकम्बरी जयंती या Shakambari Purnima इस  पौष पूर्णिमा दिवस पर मनाई जाती है। शाकम्बरी देवी, जो देवता दुर्गा का अवतार है, इस दिन उनको पूजा जाता है। जैन लोग पुष्याभिषेक यात्रा (पुष्यभिषेक यात्रा) के रूप में इसे मनाते हैं।

गंगा और यमुना के पवित्र जल में स्नान लेना इस दिन शुभ माना जाता है। भक्तों का मानना ​​है कि इस दिन पवित्र नदी गंगा और यमुना में स्नान करने से पुनर्जन्म चक्र से आत्मा को मुक्त कर देते है। वा स्नान के पश्चात भक्त एक दुसरे को Happy Paush Purnima कहते हैं

माघ पूर्णिमा का महत्व / माघ मास का महत्व

माघ पूर्णिमा (माघ महीना): माघ पूर्णिमा देश  भर में एक ‘स्नान त्योहार’ और गंगा में स्नान करने की तरह मनाया जाता है बौद्ध धर्म में, इस दिन का विशेष महत्व है। यह माना जाता है गौतम बुद्ध ने उनकी आसन्न मृत्यु इस दिवस के अवसर पर घोषणा की ।माघ पूर्णिमा रविदास जयंती और भैरव जयंती के रूप में भी मनाई जाती  है।

Phaalgun Purnima Importance 

Phalgun Month Significance

फाल्गुन पूर्णिमा (फाल्गुन पूर्णिमा): फाल्गुन महिना फाल्गुन पूर्णिमा के दिन या इस साल Falgun Purnima के दिन मनाया गया था. इस दिन रंगीन होली उत्सव और Holika Dahan भी देवी लक्ष्मी की उपस्थिति में मनाया जाता है।

Chaitra Purnima Importance 

Chaitra Purnima Date 

चैत्र पूर्णिमा (चैत्र पूर्णिमा): चैत्र पूर्णिमा हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रथम वर्ष में होती है। इस दिन हनुमान जयंती के रूप में, हनुमान जी की जयंती मनाई जाती है। भारत के कुछ भागों में, लोगों भगवान चित्रा गुप्ता , जो प्रभु यम का एक मुंशी था उसकी पूजा करते हैं।

Baishakh Month Importance

वैशाख पूर्णिमा (वैशाख पूर्णिमा): Baishakh Month Calendar Ke Anusaar वैशाख पूर्णिंमा बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। यह वीं जयंती, प्रबुद्धता और गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण (पुण्य तिथि) को मनाने के लिए बुद्ध पूर्णिमा के रूप में  भी मनाया जाता है।

Jyestha Purnima 

Jyeshta Month (ज्येष्ठ पूर्णिमा): ज्येष्ठा सबसे लोकप्रिय पूर्णिमा हैं जिसे वैट पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। इस विशेष दिन पर, वटसावित्री व्रत अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और एक ख़ुशी-ख़ुशी शादी जीवन जीने के लिए विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।

यह विशेष रूप से जगन्नाथ पुरी मंदिर में, जगन्नाथ पूर्णिमा , स्नान पूर्णिमा और उड़ीसा में देवस्नान के रूप में मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

आषाढ़ पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमागुरु पूर्णिमा) : यह पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा नाम से भी जानी जाती हैं , यह दिन महान महर्षि ऋषि वेद व्यास की स्मृति के रूप में अधिक लोकप्रिय है। यह दिन आध्यात्मिक और शैक्षिक शिक्षकों को भी समर्पित है।

Shraavan Purnima Importance

श्रावण पूर्णिमा (श्रावण पूर्णिमा): यह पूर्णिमा बहुत शुभ और हिन्दू धर्म में पवित्र मानी जाती है। श्रावण माह हिन्दू पंचांग के रूप में मनाया जाने वाला एक पवित्र महीने में से एक है। श्रावण पूर्णिमा नारली पूर्णिमा, हयग्रीव जयंती के रूप में भी जाना जाता हैं और Shravan Purnima Raksha Bandhan के  त्योहार के रूप में  भी मनाई  जाती हैं !

Bhdrapaad Purnima Importance 

Bhdrapaad Purnima Significance

भादप्रद पूर्णिमा (Bhdrapaad Purnima) : तमिल कैलेंडर में,  ये महिना भाद्रपद पुर्ततासी के रूप में भी जाना जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा सबसे अच्छा दिन महा मृत्युंजय हवं के रूप में भी मनाया जाता हैं . भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन पितृ पक्ष श्रद्धा प्रदर्शन करने के लिए शुभ माना जाता है।

Ashwin Purnima Significance 

Importance of Ashwin Purnima

अश्विन पूर्णिमा (Ashwin Purnima) : यह शरद पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा या कौमुदी (अर्थ चांदनी) के नामों से लोकप्रिय है। यह मानसून की समाप्ति का भी सूचक हैं ।

यह माना जाता है इस दिन देवी लक्ष्मी हर स्थान -स्थान जा कर रात में कोजागरी पूछती हैं (जिसका अर्थ है “कौन जाग रही है”) और जो जाएगा पाए जाते हैं उन्हें देवी लक्ष्मी जी का आशीर्वाद मिलता हैं ।

Kaartik Purnima Benefits 

Kaartik Purnima Importance

कार्तिक पूर्णिमा (Kaartic Purnima) : इस दिन  त्रिपुरी पूर्णिमा देवा के रूप में जाना जाता हैं : इस पूर्णिमा को इसके अलावा अन्य नामों से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सर्वशक्तिमान शिव द्वारा दानव त्रिपुरा की हार चिह्नित हुई थी।

भगवान कार्तिकेय की मुख्य रूप से इस दिवस के अवसर पर भगवान शिव और भगवान विष्णु के साथ पूजा की जाती हैं । सिख धर्म में, श्री गुरु नानक देव जी का जन्मदिन भी इस दिन मनाया जाता है। जैन धर्म में, यह पुष्कर मेला के दिन के रूप में मनाया जाता है।


Margashirsha Importance 

Margashirsha Purnima in Hindi

मार्गशीर्ष पूर्णिमा (Margashirsha Purnima) : यह पूर्णिमा को बत्तीसी भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पर दूसरों के कल्याण के लिए नि:स्वार्थ काम कर रहे लोग को 32 गुना अधिक आशीर्वाद मिलता हैं किसी दूसरे अन्य दिन की तुलना में ! यही कारण है कि। श्री दत्तात्रेय जयंती के रूप में भी ये दिन मनाया जाता है।





Thursday, April 8, 2021

यह था वास्तविक कारण लंकापति रावण के तपस्या करने का, ब्रह्म देव भी न समझ सके इसे

 


हम जब तक सामाजिक रूप से प्रमाणित अच्छे कार्य करते जाते हैं, तब तक समाज भी हमारी प्रशंसा करता है, लेकिन जैसे ही समाज के विरुद्ध एक बुरा काम किया नहीं कि हम सदा के लिए बुराई का पात्र बन जाते हैं. लंकापति रावण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ…

कहते हैं- इक लख पूत सवा लख नाती. ता रावण घर दिया न बाती. रावण को प्रकांड पंडित वरदानी राक्षस जिसे कालजयी कहा जाता था. लेकिन कैसे वो कालजयी जिसके बल से त्रिलोक थर-थर कांपते थे एक स्त्री के कारण समूल मारा गया. वो भी वानरों की सेना लिये एक मनुष्य से. इन बातों पर गौर करें तो ये मानना तर्क से परे होगा. लेकिन रावण के जीवन के कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिनसे कम ही लोग परिचित होंगे.

रावण ने क्यों की ब्रह्मा की तपस्या ??


ऋषि विश्वेश्रवा ने रावण को धर्म और पांडित्य की शिक्षा दी. दसग्रीव इतना ज्ञानी बना कि उसके ज्ञान का पूरे ब्रह्माण्ड मे कोई सानी नहीं था. लेकिन दसग्रीव और कुंभकर्ण जैसे जैसे बड़े हुए उनके अत्याचार बढ़ने लगे. एक दिन कुबेर अपने पिता ऋषि विश्वेश्रवा से मिलने आश्रम पहुंचे तब कैकसी ने कुबेर के वैभव को देखकर अपने पुत्रों से कहा कि तुम्हें भी अपने भाई के समान वैभवशाली बनना चाहिए.

इसके लिए तुम भगवान ब्रह्मा की तपस्या करो. माता की अज्ञा मान तीनों पुत्रा भगवान ब्रह्मा के तप के लिए निकल गए. विभीषण पहले से ही धर्मात्मा थे, उन्होने पांच हजार वर्ष एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप करके देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया इसके बाद पांच हजार वर्ष अपना मस्तक और हाथ उफपर रखके तप किया जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए विभीषण ने भगवान से असीम भक्ति का वर मांगा.



Saturday, April 3, 2021

जानिये निर्जला एकादशी का महत्व और इसके चमत्कारी लाभ

 


जानिये निर्जला एकादशी का महत्व और इसके चमत्कारी लाभ !

जी हाँ दोस्तों निर्जला एकादशी के एक व्रत से.आपकी आने वाली 10 -10 पीढ़ियो का उद्धार हों सकता हैं.क्योंकी अगर आप आने वाली nirjala ekadashi  का व्रत और पूजा विधि-विधानुसार करेंगे.तो आपको हों सकता हैं सुवर्णदान का फल प्राप्त.मित्रो सुवर्णदान का हमारे हिन्दू शास्त्रों में बड़ा महत्व हैं.ऐसा कहा जाता हैं जो भी ये फल प्राप्त करता हैं उसका जीवन आनंद से भर जाता हैं.तथा आने वाली 10 -10 पीढ़ियो का उद्धार हों जाता हैं.

अब आप जानना चाहेंगे की निर्जला एकादशी कब हैं ? और इसका अर्थ क्या हैं ?

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Nirjala ekadashi kab hain aur nirjala ekadashi ka meaning kya hain?

निर्जला एकदशी साल की 24 एकादशियो में सबसे मह्त्वपूर्ण और मुश्किल हैं. क्यो निर्जला का मतलब हैं. बिना पानी के और ये व्रत बिना पानी और अन्न के व्यवहार किये बिना किया जाता हैं.इसलिए ये व्रत अपने मुश्किल fasting rules के कारण सबसे मह्त्वपूर्ण माना  गया हैं.

निर्जला एकादशी का महत्व क्या हैं ?

इस एकादशी के व्रत को करने से समस्त तीर्थो का पुण्य,सभी 14 एकादशियो का फल मिलता हैं. इसका उपवास धन-धान्य देने वाला,पुत्रदायक,आरोग्यता को बढ़ाने वाला,तथा दीर्घ आयु को बढ़ाने वाला हैं.

श्रद्धा और भक्ति से किया गया ये व्रत ,सब पापो को सं भर में नष्ट कर देता हैं. जो मनुष्य इस दिन स्नान,जप और दान करता हैं.वह सब प्रकार से अक्षय हों जाता हैं.

ऐसा भगवान् श्री कृष्ण ने कहा हैं.जो फल सूर्ये ग्रहण के समय कुरक्षेत्र में दान करने से होता हैं.वही फल इस व्रत के करने. और कथा पढ़ने से भी प्राप्त होता हैं.

वर्ती की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.वह इस जगत का सम्पूर्ण सुख भोगदे हुए,परमधाम जाकर मोक्ष प्राप्त करता हैं.

what is nirjala ekadashi vrat procedure ?

ये व्रत जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष को रखा जाता हैं.इस दिन ब्रह्म मुहर्त में जग कर.रोज के कामो से निर्वित हों कर.स्नान कर के पवित्र हों.फिर स्वच्छ वस्त्र धारण कर.भगवान् विष्णु की पूजा आराधना.व भक्तिभाव से विधि-विधानुसार संपन्न करे.

महिलाये पूर्ण श्रृंगार कर.मेहँदी आदि रचाकर.पूर्ण श्रधा ,भक्तिभाव से पूजन करने के पश्चात.कलश के जल से पीपल के वृक्ष को अर्घ्य दे.

फिर व्रती प्रातःकाल से आरंभ कर.दुसरे दिन सूर्ये उदय तक जल और अन्न का सेवन न करे.

क्योंकी जेष्ठ मास के दिन लम्बे और भीषण गर्मी वाले होते हैं.अंत: प्यास लगाना सव्भाविक हैं.ऐसे में जल ग्रहण न करना.सचमुच एक बड़ी साधना का काम हैं.बड़े कष्टों से गुजर कर ही ये व्रत पूरा होता हैं .इस एकादशी के दिन अन्न अधवा जल का सेवन करने से व्रत खंडित हों जाता हैं.

व्रत के दुसरे दिन.यानी द्वादशी के दिन प्रातः काल निर्मल जल से स्नान कर.भगवान् विष्णु की प्रतिमा या पीपल के वृक्ष के नीचे जल,फुल ,धुप ,अगरबती और दीपक जलाकर प्रार्थना करे ,शमयाचना करे.तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाए.वा सव्ये भी भोजन करे.

इसके पश्चात यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान -दक्षिणा में शीतल जल से भरा मिटटी का घडा,अन्न ,वस्त्र ,छतरी,पंखा ,गो ,पान ,आसन ,सवर्ण ,फल आदि दे!

ऐसा माना जाता हैं की जो भी व्यक्ति घाटदान देते समय जल का नियम करता हैं ,उसे एक प्रहर के अंदर-अंदर कोटि-कोटि सुवर्णदान का फल मिलता हैं.इस दिन घर आये याचक को खाली हाथ वापस करना बुरा समझा जाता हैं.

 

निर्जला एकादशी की कथा क्या हैं ? और भीम एकादशी किसे कहते हैं ?

इस व्रत की कथा का उलेख महाभारत और श्री पदमपुराण में इस प्रकार से हैं –
एक दिन महाऋषि वेदव्यास से भीमसेन ने पूछा- पितामाह मेरे चारो भाई -युधिष्ठिर,अर्जुन ,नकुल,सहदेव ,माता कुंती और द्रोपती सभी एकादशियो को उपवास रखते हैं.निर्जला एकादशी को तो जल भी ग्रहण नहीं करते हैं.

वे चाहते हैं मैं भी उनकी तरह विधि-विधानुसार जल और अन्न ना ग्रहण कर के.उपवास रखु.मैं तो एक समय भी भोजन न ग्रहण करे बिना बुखा नहीं रह सकता.मेरे पेट में अग्नि का वास हैं.जिसकी शान्ति के लिए मुझे बहुत सा अन्न भोजन में खाना पड़ता हैं.

हाँ मैं विधिवत भक्ति भाव से भगवन की पूजा और दान कर सकता हूँ.क्या कोई ऐसा व्रत नहीं हैं.जिसमे मुझे कोई जादा कष्ट ना हों.और एक ही दिन में सभी राशियों का फल प्राप्त हों जाये?

तब महा ऋषि वेदव्यास बोले -हे भीम तुम जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो!

इस व्रत में स्नान और वाचमन को छोड़कर.जल का व्यव्हार मत करना .इसके उपवास से तुम्हे सभी 14 एकादशियो को फल प्राप्त होगा.

फिर महा ऋषि वेदव्यास के सामने प्रतिज्ञा कर .इस एकमात्र एकादशी का व्रत पूरा किया.तभी से इसे “भीमसेनी एकादशी” या “भीम एकादशी” या पांडव एकादशी  के नाम से भी जाना जाता हैं!

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जाने योगिनी एकादशी की व्रत विधि और कथा

 




जाने योगिनी एकादशी की व्रत विधि और कथा

yogini ekadashi importance

इस सनातनी एकादशी का व्रत संसाररूपी समुन्द्र में डूबने वालो के लिए जहाज के सामान और सब प्रकार के पापो का नाश कर मुक्ति दिलाने वाला हैं! इसके प्रभाव से गोहत्या तथा पीपल के पवित्र वृक्ष को काटने जैसा महापाप भी नष्ट हों जाते हैं.व्रती भक्त का भयंकर कुष्ठरोग इसके पुण्य के प्रताप से दूर होता हैं ! हज़ारो ब्राहम्णो को भोजन कराने से जो फल प्राप्त होता हैं ,वही व्रत इस फल के करने से मिलता हैं.व्रती के सारे मनोरथ पूर्ण करने और मोक्ष प्राप्ति में भी यह व्रत फलदायी हैं!

yogini ekadashi vrat vidhi

यह व्रत आषाढ़ा मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को रखा जाता हैं ! इस दिन सुबह जागकर दैनिक कामो से निवर्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे! फिर भगवान् विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर ,चन्दन ,रोली ,धुप ,दीप,पुष्प से पूजन ,आरती करे!इस व्रत में लाल चन्दन और लाल गुलाब के फूलो की माला का उपयोग करने का अधिक महत्व माना गया हैं! मिष्ठान,फल,नैवेध में पांच मेवों का भोग लगाकर प्रसाद भक्तो में वितरित करे! पूजन के बाद याचको एव ब्राहम्णो को यधा शक्ति दान दे!

yogini ekadashi katha

इस व्रत की कथा का उल्लेख श्री पदम पुराण में इस प्रकार किया गया हैं –
प्राचीन काल में यक्षों के स्वामी कुबेर की नगरी अलकापुरी में हेम नाम का एक मालिक रहता था ! वह माली अपने स्वामी कुबेर की आज्ञानुसार प्रतिदिन मानसरोवर से पुष्प लाता था,जिन्हे कुबेर भगवान् शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा के निमित प्रयोग में लाते थे !

माली हेम की विशालाक्षी नाम की सुन्दर पत्नी थी.एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया ,किन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी पत्नी के साथ रमण करने लगा और दोपहर तक कुबेर के पास न पहुंचा !

जब कुबेर को उसकी राह देखते -देखते दोपहर हों गई.तो उन्होंने क्रोधित होकर अपने सेवको को आज्ञा दी .की तुम लोग जाकर माली का पता लगाओ.की वह अभी तक पूजा के लिए पुष्प क्यों नहीं लाया ?

 

सेवको ने माली का पता लगया और सारी बाते कुबेर को बताई की “हे स्वामी ! वह कुबेर अभी तक हैं तो अपने ही घर में .लेकिन अपनी पत्नी के साथ ऐसी हालत में हैं की हमने हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा ,इसलिए हम लौट आये हैं .इस पर कुबेर ने सेवको को किसी भी हालत में माली को राजदरबार में लाने का आदेश दिया !

हेम माली भय से कापता हुआ राजदरबार में पुहचा,तो कुबेर उस पर बहुत क्रोधित हुए ! उन्होंने हेम माली से कहा -“रे पापी !महानीच कामी !तूने मेरे परमपूजनीय ईश्वरो के भी ईश्वर भगवान् शिव का बहुत अनादर किया हैं ! मैं तुझे शाप देता हूँ की तू स्त्री -वियोग भोगेगा और मृत्यु लोक में जाकर श्वेत कुष्ठ की बीमारी से पीड़ित रहेगा !’

शाप के कारण उसी समय से हेम का शरीर श्वेत कुष्ठ से गुलने लगा !वह कोढ़ी हों गया और जगह-जगह भटकने लगा !भटकते -भटकते एक दिन वह महृषि मार्कण्डये के आश्रम में जा पहुंचा !उसकी ऐसी हालत देखकर महृषि मार्कण्डये को उस पर दर्वित हों गए !

हेम ने अपना दोष और कुबेर के दवारा शाप दिए जाने की बात बताई ,तो महृषि मार्कण्डये को उस पर दया आ गई .उन्होंने कहा -क्योंकी तूने मेरे समुख सत्ये बोला हैं ,इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ !

यदि तू आषाढ़ा मास के कृष्ण पक्ष में योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा ,तो तेरे समस्त पाप नष्ट हों जायगे और तू पहले की भाति ही स्वरूपवान हों जायगा !’

महृषि मार्कण्डये के ऐसे सुभाषित वचन सुनकर हेम माली ने योगिनी एकादशी का व्रत किया !व्रत का प्रभाव इतना प्रबल था की वह अगले ही दिन दिव्य शरीर वाला बन गया !तभी से योगिनी एकादशी का व्रत रखने की परिपाटी चली आ रही हैं !

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Monday, September 28, 2009

Vijaya Dashmi

 


Vijaya Dashami, The Festival of the Victory of the forces of Good over Evil, also known as "Dussehra" and "Dashain" in Nepali, is a Festival Celebrated across Nepal and India.

 

It is celebrated on the 10th day of the Bright Half of the Hindu Month of Ashwayuja or Ashwina, and is the grand culmination of the 10-Day Annual Festival of Dasara or Nav-Ratri.

Dussehra is one of the most significant Festivals of India. The festival is actually the expression of Worshiping Shakti, the Cosmic Energy, manifested in the form of Goddess Durga, who defeated the Buffalo Demon - Mahishashur.

This festival also marks the Triumph of Raam, the God King over Raavan, the 10-Headed Demon King inhabiting the Island Kingdom of Lanka called as Sri Lanka in India.

Both of these Legends underscore the Triumph of Good over Dark and Evil Forces. Hence, Dussehra is the Celebration of the Spirit of Goodness.

 

The origin of Dussehra has its roots in the Epic - Ramaayan. The legend narrates the story of Raam.. His Step-Mother Queen Kaikeyee wasn't tricked in to asking King Dashrath, Lord Rama's Father, to exile him for 14 years.

Sita, who is Lord Raam's devoted wife and his faithful younger brother, Lakshman went along with him.

While Raam was in exile, the information that he was staying at an Ashram, spread widely.

One day a Lady Demon named Sawarup Nakha (Soorankha) arrived there. She was so beautiful and asked Raam and Lakshman to marry her.

But when both the brothers rejected her proposal, she became resentful of Sita and threatened to kill her, so that Raam would become single again and may agree to marry her.

But to her disappointment, Lakhshman insulted her (took out his sword and cut off her nose, as per story) to teach a lesson.

 

The Demon King Raavan, brother of Sawarup Nakha, became outraged and decided to take revenge on Raam.

In disguise, Raavan abducted Sita and brought her to his Island Kingdom of Lanka.

To rescue Sita from the grasp of Raavan, Raam and his brother Lakshman along with the Army of Monkeys, led by Hanuman, the Monkey God attacked Lanka.

A fierce battle between the two forces began and it continued for many days. Defeating Raavan was a challenging task, as the blessing of the Lord Brahma (One of the Hindu God Supemo) prevented him from being killed by any human being.

But Raam was the incarnation of the Lord Vishnu (The Main Hindu God Supremo) as the 7th Avataar.

Moreover, with relentless prayer for 9 Days to Nine Different Aspects of Devi Durga, he attained amazing strength, which eventually brought downfall of Raavan and he won over the War.

 

Conquering the Demon King Raavan, Raam along with his wife Sita and brother Lakshman, returned to his Own Kingdom - Ayodhya on the day of Dussehra.

Therefore, Dussehra can also be interpreted as "Das-Haraa", which signifies the cutting of the 10 Heads of Raavan. Since then, the observance of Dassehra is celebrated more in admiration of Prabhu Raam Chandra than Durga Devi.



Another legend associated with this auspicious occasion is the story of Kausta, the youngest son of Devdatt.

After successfully accomplishing his study under the guidence of Rishi Varatantu, he requested his mentor to accept any gift as Guru-Dakshina.

Though initially Rishi Varatanu refused the offer but afterward he asked for 100 Million Gold Coins for each of the subject taught, as Kausta learnt several subjects, it amounted to 140 Hundred Million Gold Coins.

To keep his promise Kausta asked King Raghu for the money, who was renowned for his generosity.

 

With the help of Kuber, the God of Wealth, he brought a Shower of Gold Coins near the Shanu and Apati Trees.

 

After giving what his Guru asked for, the rest of the Coins were distributed among the Poor and Needy People on the day Dassehra.

 

Since then, people of Ayodhya pluck the Leaves of Apati Tree and present each other as 'Sona' or Gold.

 

Dussehra Festival is the day to worship the Weapons as well.

 

According to the epic - Mahaa-Bhaarat, Arjun the Pandav Prince, concealed his weapons in a Shami Tree when Pandavas were on exile.

 

After a year they came out of the forest and retrieved their weapons on the day of Dussehra and they worshipped their Weapons along with the Shami Tree.

 

Mahaa-Bhaarat is also a Story of Victory of Goods over Evils.