हम जब तक सामाजिक रूप से प्रमाणित अच्छे कार्य करते जाते हैं, तब तक समाज भी हमारी प्रशंसा करता है, लेकिन जैसे ही समाज के विरुद्ध एक बुरा काम किया नहीं कि हम सदा के लिए बुराई का पात्र बन जाते हैं. लंकापति रावण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ…
कहते हैं- इक लख पूत सवा लख नाती. ता रावण घर दिया न बाती. रावण को प्रकांड पंडित वरदानी राक्षस जिसे कालजयी कहा जाता था. लेकिन कैसे वो कालजयी जिसके बल से त्रिलोक थर-थर कांपते थे एक स्त्री के कारण समूल मारा गया. वो भी वानरों की सेना लिये एक मनुष्य से. इन बातों पर गौर करें तो ये मानना तर्क से परे होगा. लेकिन रावण के जीवन के कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिनसे कम ही लोग परिचित होंगे.
रावण ने क्यों की ब्रह्मा की तपस्या ??
ऋषि विश्वेश्रवा ने रावण को धर्म और पांडित्य की शिक्षा दी. दसग्रीव इतना ज्ञानी बना कि उसके ज्ञान का पूरे ब्रह्माण्ड मे कोई सानी नहीं था. लेकिन दसग्रीव और कुंभकर्ण जैसे जैसे बड़े हुए उनके अत्याचार बढ़ने लगे. एक दिन कुबेर अपने पिता ऋषि विश्वेश्रवा से मिलने आश्रम पहुंचे तब कैकसी ने कुबेर के वैभव को देखकर अपने पुत्रों से कहा कि तुम्हें भी अपने भाई के समान वैभवशाली बनना चाहिए.
इसके लिए तुम भगवान ब्रह्मा की तपस्या करो. माता की अज्ञा मान तीनों पुत्रा भगवान ब्रह्मा के तप के लिए निकल गए. विभीषण पहले से ही धर्मात्मा थे, उन्होने पांच हजार वर्ष एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप करके देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया इसके बाद पांच हजार वर्ष अपना मस्तक और हाथ उफपर रखके तप किया जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए विभीषण ने भगवान से असीम भक्ति का वर मांगा.